आपातकाल : संवैधानिक प्रावधान,
परिस्थितियाँ एवं प्रभाव

: March 07, 2017    : Milan

र्मनी के संविधान के राष्ट्रपति की तरह भारत के राष्ट्रपति को भी संकटकाल/आपातकाल (emergency) में उत्पन्न कठिनाइयों का समाधान करने के लिए अत्यंत ही विस्तृत और निरंकुश अधिकार दिए गए हैं. जब राष्ट्रपति आपातकाल की घोषणा करेगा तब उसके हाथों में ऐसे बहुत-से अधिकार आ जायेंगे जो उसे साधारण स्थिति में प्राप्त नहीं हैं.

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आपातकाल तीन स्थितयों में घोषित किया जाता है- Declaration of Emergency

  1. युद्ध या युद्ध की संभावना अथवा सशस्त्र विद्रोह से उत्पन्न संकट
  2. राज्यों में संवैधानिक तंत्र के विफल होने से उत्पन्न संकट
  3. आर्थिक संकट

युद्ध या युद्ध की संभावना अथवा आंतरिक अशांति से उत्पन्न संकट

संविधान के अनुच्छेद 352 के अनुसार, यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए कि देश अथवा देश के किसी भाग की सुरक्षा तथा शान्ति युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्रन है, तो वह आपातकाल की घोषणा करग का शासन अपने हाथ में ले सकता है. राष्ट्रपति इस आशय की घोषणा उस दशा में भी कर सकता है, जब उसे यह विश्वास हो जाए कि युद्ध अथवा सशस्त्र विद्रोह के कारण देश अथवा देश के किसी भाग की सुरक्षा और शान्ति निकट भविष्य में संकट में पड़नेवाली है. तात्पर्य यह है कि संभावना मात्र से ही राष्ट्रपति आपातकाल (emergency) की घोषणा कर सकता है.

संविधान के 44वें संशोधन अधिनियम के अनुसार राष्ट्रपति के आपातकालीन अधिकार (emergency power) में परिवर्तन किये गए; जैसे

  1. अपने मंत्रिमंडल के निर्णय के बाद प्रधानमंत्री द्वारा लिखित सिफारिश केअड़ ही राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा कर सकता है.
  2. राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की घोषणा (declaration of emergency) के 30 दिनों के अंतर्गत घोषणा पर संसद के दोनों सदनों द्वारा 2/3 बहुमत से स्वीकृति आवश्यक है, अन्यथा छह महीने के बाद संकटकाल की घोषणा समाप्त समझी जाती है.
  3. यदि लोक सभा के 1/10 सदस्य इस आशय का प्रस्ताव रखें कि आपातकाल (emergency) समाप्त हो जाना चाहिए, तो 14 दिनों के अन्दर ही इस प्रस्ताव पर विचार के लिए सदन की बैठक बुलाने की व्यवस्था की जायेगी.
  4. नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार आपातकाल की घोषणा (declaration of emergency) के बाद भी समाप्त नहीं किये जायेंगे.

    भारत के राष्ट्रपति ने अपने इस अधिकार का प्रयोग सर्वप्रथम 1962 ई. में किया था, जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया. दूसरी बार इसका प्रयोग 1971 ई. में (Pakistan War) किया गया. तीसरी बार इसका प्रयोग 26 जून, 1975 को आंतरिक अशांति के नियंत्रण के लिए किया गया.

जब तक यह घोषणा लागू रहेगी तब तक

  1. संघ की कार्यपालिका किसी राज्य को यह आदेश दे सकती है कि वह राज्य अपनी कार्यपालिका शक्ति का किसी रीति से उपयोग करे
  2. संसद राज्यों की सूची में वर्णित विषयों पर कानून-निर्माण कर सकती है.
  3. नागरिकों के कई मूल अधिकार स्थगित हो जायेंगे.
  4. राष्ट्रपति मूल अधिकारों को कार्यान्वित करने के लिए किसी व्यक्ति के सर्वोच्च, उच्च या अन्य न्यायालयों में जाने के अधिकार को स्थगित कर सकता है, और
  5. राष्ट्रपति संघ तथा राज्यों के बीच राजस्व-विभाजन सम्बंधित समस्त उपबंधों को स्थगित कर सकता है.

राज्यों में सांवैधानिक तंत्र की विफलता से उत्पन्न संकट

संविधान के अनुच्छेद 365 के अनुसार, यदि राष्ट्रपति को राज्यपाल से सूचना मिले अथवा उसे यह विश्वास हो जाए कि किसी राज्य में संविधान के अनुसार शासन चलाना असंभव हो गया है, तो वह घोषणा द्वारा उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है. ऐसी स्थिति में वह राज्य की कार्यपालिका शक्ति अपने हाथों में ले सकता है, राज्य के विधानमंडल की शक्तियाँ संसद राष्ट्रपति को दे सकती है. राष्ट्रपति कभी भी दूसरी घोषणा द्वारा इस घोषणा को रद्द कर सकता है.

इस प्रकार की घोषणा संसद के दोनों सदनों के सामने रखी जाएगी और दो महीने तक लागू रहेगी. लेकिन, यदि इसी बीच संसद की स्वीकृति मिल जाए, तो वह दो महीनों के बाद भी स्वीकृति की तिथि से छह महीने तक लागू रहेगी. संविधान के 44वें संशोधन के अनुसार अब किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन अधिक-से-अधिक 1 वर्ष रह सकता है. यह 1 वर्ष से अधिक तभी रह सकता है जब निर्वाचन आयोग सिफारिश करे कि राज्य में चुनाव कराना संभव नहीं.

इस प्रकार की घोषणा से राष्ट्रपति राज्य के उच्च न्यायालय के अधिकारों को छोड़कर राज्य के समस्त कार्यों और अधिकारों को अपने हाथ में ले सकता है. यदि लोक सभा अधिवेशन में न हो, तो वह राज्य की संचित निधि से व्यय करने की आज्ञा भी दे सकता है. संविधान द्वारा संघ सरकार का हो, तो राष्ट्रपति यह समझ सकता है कि राज्य का संवैधानिक तंत्र विफल हो चुका है और वह इस आशय की घोषणा निकाल सकता है.

आर्थिक संकट

संविधान के अनुच्छेद 360 के अनुसार, यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिसमें भारत अथवा उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की आर्थिक स्थिरता और साख को खतरा है, तो वह इस आशय की घोषणा कर सकता है. दूसरी घोषणा के द्वारा उसे इस घोषणा को रद्द करने का भी अधिकार है. यह घोषणा संसद के दोनों सदनों के सामने रखी जायेगी और संसद की स्वीकृति मिल जाये, तो यह दो महीनों तक लागू रहेगी. यदि यह घोषणा उस समय की गई है जबकि लोक सभा के भंग होने के पूर्व स्वीकृति न हुई हो, तो युद्ध अथवा आंतरिक अशांति के लिए निर्धारित व्यवस्था काम में लाई जायेगी.

इस घोषणा का प्रभाव यह होगा कि संघ की कार्पालिका शक्ति को राज्यों के आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार मिल जायेगा. राष्ट्रपति को यह अधिकार होगा कि वह सरकारी नौकरों, यहाँ तक कि सर्वोच्च और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन कम करने और राज्यों के विधानमंडल द्वारा स्वीकृत धन विधेयक और वित्त विधेयक को अपनी स्वीकृति के लिए रोक कर रखने का आदेश दे. इसका प्रयोग अभी तक नहीं हुआ है.

आपातकाल की घोषणा

तत्कालीन प्रधानंमत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा भारत में 1975 में लगाया गया आपातकाल भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में सबसे बड़ी घटना है। आज की पीढ़ी आपातकाल के बारे में सुनती जरूर है, लेकिन उस दौर में क्या घटित हुआ, इसका देश और तब की राजनीति पर क्या असर हुआ, इसके बारे में बहुत कम ही पता है। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने एक बार फिर तानाशाही की वापसी की आशंका जताकर इस विषय पर तीखी बहस छेड़ दी है।

आडवाणी की आशंका को पूरी तरह खारिज भी नहीं किया जा सकता क्योंकि 1975 में जब आपातकाल की घोषणा की गई थी तब सत्ता और संगठन के सारे सूत्र श्रीमती इंदिरा गांधी के हाथ में ही थे और आज भी कमोबेश स्थितियां वैसी ही बन रही हैं। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं, जबकि पार्टी अध्यक्ष पद पर उनके खासमखास अमित शाह हैं।

आपातकाल कब और क्यों, बिन्दुवार जानकारी

  1. अब से चालीस वर्ष पहले यानी 25-26 जून की दरम्यानी रात 1975 से 21 मार्च 1977 तक (21 महीने) के लिए भारत में आपातकाल घोषित किया गया था।
  2. तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी थी।
  3. स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक समय था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे और सभी नागरिक अधिकारों को समाप्त कर दिया गया था।
  4. इसकी जड़ में 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, जिसमें उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राजनारायण को पराजित किया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी।
  5. 12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर उन पर छह साल तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगा दिया और उनके मुकाबले हारे और श्रीमती गांधी के चिरप्रतिद्वंद्वी राजनारायण सिंह को चुनाव में विजयी घोषित कर दिया था।
  6. राजनारायण सिंह की दलील थी कि इन्दिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसा खर्च किया और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया।
  7. अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया था। इसके बावजूद श्रीमती गांधी ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया। तब कांग्रेस पार्टी ने भी बयान जारी कर कहा था कि इन्दिरा गांधी का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है।
  8. इसी दिन गुजरात में चिमनभाई पटेल के विरुद्ध विपक्षी जनता मोर्चे को भारी विजय मिली। इस दोहरी चोट से इंदिरा गांधी बौखला गईं।
  9. इन्दिरा गांधी ने अदालत के इस निर्णय को मानने से इनकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई।
  10. उस समय आकाशवाणी ने रात के अपने एक समाचार बुलेटिन में यह प्रसारित किया कि अनियंत्रित आंतरिक स्थितियों के कारण सरकार ने पूरे देश में आपातकाल (इमरजेंसी) की घोषणा कर दी गई है।
  11. आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा था, 'जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील कदम उठाए हैं, तभी से मेरे खिलाफ गहरी साजिश रची जा रही थी।

क्या हुआ आपातकाल का असर

  1. इस दौरान जनता के सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था। सरकार विरोधी भाषणों और किसी भी प्रकार के प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया।
  2. समाचार पत्रों को एक विशेष आचार संहिता का पालन करने के लिए विवश किया गया, जिसके तहत प्रकाशन के पूर्व सभी समाचारों और लेखों को सरकारी सेंसर से गुजरना पड़ता था। अर्थात तत्कालीन मीडिया पर भी अंकुश लगा दिया गया था।
  3. आपातकाल की घोषणा के साथ ही सभी विरोधी दलों के नेताओं को गिरफ्तार करवाकर अज्ञात स्थानों पर रखा गया। सरकार ने मीसा (मैंटीनेन्स ऑफ इंटरनल सिक्यूरिटी एक्ट) के तहत कदम उठाया।
  4. उस समय बिहार में जयप्रकाश नारायण का आंदोलन अपने चरम पर था। कांग्रेस के कुशासन और भ्रष्टाचार से तंग जनता में इंदिरा सरकार इतनी अलोकप्रिय हो चुकी थी कि चारों ओर से उन पर सत्ता छोड़ने का दबाव था, लेकिन सरकार ने इस जनमानस को दबाने के लिए तानाशाही का रास्ता चुना।
  5. 25 जून, 1975 को दिल्ली में हुई विराट रैली में जय प्रकाश नारायण ने पुलिस और सेना के जवानों से आग्रह किया कि शासकों के असंवैधानिक आदेश न मानें। तब जेपी को गिरफ्तार कर लिया गया।
  6. यह ऐसा कानून था जिसके तहत गिरफ्तार व्यक्ति को कोर्ट में पेश करने और जमानत मांगने का भी अधिकार नहीं था।
  7. विपक्षी दलों के सभी बड़े नेताओं मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडीज, जयप्रकाश नारायण और चन्द्रशेखर को भी जेल भेज दिया गया, जो इन्दिरा कांग्रेस की कार्यकारिणी के निर्वाचित सदस्य थे।
  8. इसी दौरान सरकार ने संविधान में परिवर्तन कर एक ऐसी व्यवस्‍था को पनपने का आधार तैयार किया जिसको राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुखपत्र 'आर्गनाइजर' ने 'पारिभाषिक दाग' का नाम दिया। पत्र के संपादकीय में कहा गया है कि ये दाग उस कथित धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी राजनीति को गढ़ रहे हैं जो कि सत्ता के राजनीतिक दुरुपयोग से लेकर वोट बैंक की राजनीति में बदल गए हैं। ये समाज में वैमनस्यता, भेदभाव को बढ़ाने के साथ-साथ जनता परिवार और उनके गुटों के नाम पर सामने आए हैं।

और फिर चली इंदिरा गांधी विरोधी लहर

  1. आपातकाल लागू करने के लगभग दो साल बाद विरोध की लहर तेज होती देख इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर 1977 में चुनाव कराने की सिफारिश कर दी।
  2. चुनाव में आपातकाल लागू करने का फैसला कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ। खुद इंदिरा गांधी अपने गढ़ रायबरेली से चुनाव हार गईं।
  3. जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। संसद में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 350 से घटकर 153 पर सिमट गई और 30 वर्षों के बाद केंद्र में किसी ग़ैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ।
  4. कांग्रेस को उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में एक भी सीट नहीं मिली।
  5. नई सरकार ने आपातकाल के दौरान लिए गए फैसलों की जांच के लिए शाह आयोग गठित किया।
  6. नई सरकार दो साल ही टिक पाई और अंदरुनी अंतर्विरोधों के कारण 1979 में सरकार गिर गई। उपप्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने कुछ मंत्रियों की दोहरी सदस्यता का सवाल उठाया जो जनसंघ के भी सदस्य थे।
  7. इसी मुद्दे पर चरण सिंह ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई, लेकिन उनकी सरकार मात्र पांच महीने ही चल सकी। उनके नाम पर कभी संसद नहीं जाने वाले प्रधानमंत्री का रिकॉर्ड दर्ज हो गया।
  8. ढाई साल बाद हुए आम चुनाव में इन्दिरा गांधी फिर से जीत गईं।
  9. हालांकि जनता पार्टी ने अपने ढाई वर्ष के कार्यकाल में संविधान में ऐसे प्रावधान कर दिए जिससे देश में फिर आपातकाल न लग सके।
  10. इसके बाद देश में क्षेत्रीय दलों का प्रभाव बढ़ा। कांग्रेस की देखादेखी वंशवाद प्रायः सभी दलों में पहुंच गया। ऊपर से देखने पर लोकतंत्र तो है पर वह कुछ परिवारों के पास ही बंधक बनकर रह गया है।
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