1857की क्रांति के पश्चात् भारत में राष्ट्रीयता की भावना का उदय तो अवश्य हुआ लेकिन वह तब तक एक आन्दोलन का रूप नहीं ले सकती थी, जबतक इसका नेतृत्व और संचालन करने के लिए एक संस्था मूर्त रूप में भारतीयों के बीच नहीं स्थापित होती. सौभाग्य से भारतीयों को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) के रूप में ऐसी ही संस्था मिली. यूँ तो पहले भी छोटी-मोटी संस्थाओं का प्रादुर्भाव हो चुका था. जैसे 1851 ई. में “ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन” तथा 1852 में “मद्रास नेटिव एसोसिएशन” की स्थापना की गई थी. इन संस्थाओं का निर्माण होने से राजनीतिक जीवन में एक चेतना जागृत हुई. इन संस्थाओं के द्वारा नम्र भाषा में सरकार का ध्यान नियमों में संशोधन लाने के लिए आकर्षित किया जाता था, लेकिन साम्राज्यवादी अंग्रेज हमेशा इन प्रस्तावों को अनदेखा ही कर देते थे.

ब्रिटिश सरकार की उपेक्षापूर्ण नीति के कारण भारतीयों ने 1857 का आन्दोलन किया और उसके बाद भारतीयों का विरोध कभी रुका नहीं, चलता ही रहा. श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी एवं आनंद मोहन बोस ने 1876 ई में “इंडियन एसोसिएशन” नामक एक संस्था की स्थापना की. उसके बाद पूना में एक “सार्वजनिक सभा” नामक संस्था का निर्माण किया गया. भारतीय आन्दोलन प्रतिदिन शक्तिशाली हो रहा था. A.O. Hume ने 1883 ई. में कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्नातकों के नाम एक पत्र प्रकाशित किया, जिसमें भारत के सामजिक, नैतिक एवं राजनीतिक उत्थान के लिए एक संगठन बनाने की अपील की गई थी.
A.O. Hume के प्रयास ने भारतवासियों को प्रभावित किया और राष्ट्रीय नेताओं तथा सरकार के उच्च पदाधिकारियों से विचार-विमर्श के पश्चात् Hume ने “इंडियन नेशनल यूनियन” की स्थापना की. बाद में बंगाल में “नेशनल लीग” मद्रास में “महाजन सभा” और बम्बई में “प्रेसीडेंसी एसोसिएशन” की स्थापना इसी क्रम में की गयी. इसके बाद Hume इंगलैंड गए और वहाँ ब्रिटिश प्रेस तथा सांसदों से बातचीत कर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के स्थापना की पृष्ठभूमि तैयार कर ली. कांग्रेस (INC) का प्रथम अधिवेशन 28 दिसम्बर, 1885 ई. को बम्बई में हुआ जिसके प्रथम अध्यक्ष श्री व्योमेशचन्द्र बनर्जी थे. इस प्रकार कांग्रेस के रूप में भारतीयों को एक माध्यम मिल गया जो स्वतंत्रता की लड़ाई में उनका नेतृत्व करता रहा. राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रथम चरण 1885 से 1905 तक का उदारवादी युग के नाम से पुकारा जाता है.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रारंभिक उद्देश्य:
प्रारम्भ में कांग्रेस का उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा करना था अथवा राष्ट्रीयता के माध्यम से सुधार लाना था. कांग्रेस के प्रारंभिक उद्देश्य निम्नलिखित हैं –
- भारत के विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रीय हित के काम में संलग्न व्यक्तियों के बीच घनिष्ठता और मित्रता बढ़ाना.
- आनेवाले वर्षों में राजनीतिक कार्यक्रमों की रुपरेखा तैयार करना और उन पर सम्मिलित रूप से विचार-विमर्श करना.
- देशवासियों के बीच मित्रता और सद्भावना का सम्बन्ध स्थापित करना तथा धर्म, वंश, जाति या प्रांतीय विद्वेष को समाप्त कर राष्ट्रीय एकता का विकास एवं सुदृढ़ीकरण करना.
- महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक सामजिक प्रश्नों पर भारत के प्रमुख नागरिकों के बीच चर्चा एवं उनके सम्बन्ध में प्रमाणों का लेख तैयार करना.
पार्टी के पार्टी के अध्यक्षों की सूची/अधिवेशन:
- व्योमेशचन्द्र बनर्जी – 29 December 1844 – 1906 1885 बम्बई
- दादाभाई नौरोजी – 4 September 1825 – 1917 1886 कलकत्ता
- बदरुद्दीन तैयबजी – 10 October 1844 – 1906 1887 मद्रास
- जॉर्ज यूल – 1829–1892 1888 अलाहाबाद
- विलियम वेडरबर्न – 838–1918 1889 बम्बई